रंगमंच की रंग - भाषा में सिनेमा की तर्ज़ पर दर्शक को चोकने का चलन जोरो पर है ,जिसके चलते रंगमंच परइलेक्ट्रोनिक युक्तियों का उपयोग हो रहा है जो दर्शक को भ्रमित करता और चोकता है | रंगमंच दर्शक को अनुभवप्रदान करता है अगर सार्थक हो तो, दर्शक कुछ महसूस कर आत्मसात करता है|पर रंग मंच की सबसे बड़ीजीवित शक्ति एवम तकनीक अभिनेता आज की इस इलेक्ट्रोनिक रंग-भाषा में अपने अस्तित्व को खोज रहा हेंकयोंकि दर्शक इलेक्ट्रोनिक चमत्कारों को देखता है अभिनेता उस महिमा मैं बोने दिखाई देते हें क्यों ? कभी रंग-मंच पर अपने अभिनय से दूसरी दुनिया की यात्रा करवाने वाला सर्वशक्तिमान अभिनेता आज के रंगमंच मेंबेचारा जान पड़ताहै | पात्र बन अलग -अलग रस में दर्शको सराबोर करने वाला आज संवादों को बोलने क लिएतरसता हें वो भी रेकॉर्डेड होते है |रंग-संगीत इलेक्ट्रोनिक ध्वनियों का ज़खीरा हो गया जो अब कर्ण - प्रिये नहींशोर जान पड़ता हें |बुजर्गो का दर्शक वर्ग ये सब नहीं बर्दाश्त कर पाता जोर की आवाजें ,अनावश्यक प्रकाशव्यवस्था और दर्शक चोंका कर घर भेजता है | मैं प्रयोग का विरोधी नहीं हु, पर चाहता हु कि युवा रंग निर्देशकमाध्यम की उर्जा को समझे सिनेमा और रंग -मंच दो अलग और सशक्त माध्यम हें दोनों की खूबी है ,सहजता औरसोम्यता रंग-मंच की पहचान हें जिसे बरक़रार रखना भी हम युवाओ की ज़िमैंदारी है | ये प्रयोग की सोयता और मोलीक रंग-मंच के बारे मे सोचे और रंग -संवाद ताकि अपने भारतीय रंगमंच को सार्थक रंगमंच तक बने
Tuesday, May 11, 2010
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